मोदी का ₹4,300 करोड़ घोटाला और लोकतंत्र की खुली लूट
मोदी का ₹4,300 करोड़ घोटाला और लोकतंत्र की खुली लूट
2019 से अब तक, गुजरात
की 10 अनजान और
बेनाम राजनीतिक पार्टियों
को ₹4,300 करोड़ से
ज़्यादा की धनराशि
भेजी गई है। इन पार्टियों
ने लोकसभा और
विधानसभा चुनावों में मिलाकर
केवल 54,029 वोट ही
हासिल किए, और अपने उम्मीदवारों
के नाम पर मात्र ₹39 लाख का खर्च दिखाया।
लेकिन उनके खर्च
के रिकॉर्ड में
₹3,500 करोड़ से अधिक
की अतिरिक्त रकम
दर्ज है। सवाल
सिर्फ ये नहीं है कि
ये पैसा आया
कहां से बल्कि
असली सवाल है:
ये पैसा गया
कहां? क्योंकि ये
कोई मामूली गड़बड़ी
नहीं, बल्कि लोकतंत्र
के नाम पर चल रहा
एक संगठित लूटतंत्र
है।
क्या
यह ब्लैक मनी
को व्हाइट करने
का एक तंत्र
है? क्या इस पैसे का
इस्तेमाल ED, CBI और आयकर
विभाग को रिश्वत
देने में हुआ,
ताकि विपक्ष पर
फर्ज़ी छापे डाले
जा सकें? क्या
ये सब मोदी के लिए
चलाए जा रहे उस छिपे
हुए राजनीतिक युद्ध
के तहत हो रहा है,
जिसका असली चेहरा
अब धीरे-धीरे
सामने आ रहा है?
यह
कोई अपवाद नहीं
है ये तो भारत की
समानांतर अर्थव्यवस्था की असली तस्वीर है।
ड्रग्स, तस्करी, अवैध
व्यापार, देह व्यापार,
और गैर-कानूनी
मनोरंजन के धंधों
से निकलने वाली
काली कमाई को अब राजनीतिक
चंदों के नाम पर धोकर
सिस्टम में डाल दिया जाता
है। और इसका गढ़ बना
है गुजरात।
अक्सर
लोग सोचते हैं
कि 'गुजरात मॉडल'
मोदी की कामयाबी
का नाम है। हकीकत ये
है कि इस मॉडल की
असली बुनियाद 70 सालों
से ब्लैक मनी
को साफ़ करने
की तकनीकों पर
टिकी हुई है। कांग्रेस ने यह सिस्टम खड़ा
नहीं किया, लेकिन
इसकी सबसे बड़ी
गलती थी इसे खत्म ना
करना। कांग्रेस ने
राष्ट्र निर्माण को
प्राथमिकता दी संस्थानों
को मज़बूत किया,
गरीबों के लिए काम किया
but उन्होंने इस छाया
व्यवस्था पर कभी
हथौड़ा नहीं चलाया,
क्योंकि उन्हें डर
था कि इससे बिजनेस लॉबी
नाराज़ हो जाएगी।
लेकिन
फिर आए नरेंद्र
मोदी एक ऐसा व्यक्ति जिसे ना नैतिकता का डर था, ना
शिक्षा की समझ थी, और
जिसे सत्ता की
भूख हर उस हद से
पार थी, जहाँ
तक पहले कोई
नहीं गया। बिजनेस
लॉबी को उनका यही रवैया
पसंद आया। उन्होंने
मोदी को गुजरात
की सत्ता में
बैठाया और एक ऐसा मॉडल
खड़ा किया, जो
बाहर से चमकदार
दिखता था, लेकिन
अंदर से पूरी तरह सड़ा
हुआ था। मोदी
के राज में गुजरात में
अवैध गतिविधियाँ बढ़ीं
लेकिन मीडिया, प्रचार
और 'हिंदू गौरव'
के शोर में ये सब
छिपा दिया गया।
असल
खेल इससे भी बड़ा था।
RSS पिछले 67 सालों से
इसी दिन के लिए काम
कर रहा था देश को
यह यकीन दिलाने
में कि अगर भारत एक
हिंदू राष्ट्र होता,
तो आज हम ‘स्वर्ण युग’
में जी रहे होते। लेकिन
उनका ये सपना असल में
एक धर्म की आड़ में
चलाया गया सामंती
मॉडल है, जहां
दौलत कुछ हाथों
में केंद्रित होती
है, और आम जनता भावनात्मक
नारों में उलझी
रहती है। हिंदुत्व
के नाम पर अब जो
हो रहा है, वो धर्म
नहीं धर्म का व्यापारीकरण है।
देखिए
अयोध्या की ज़मीन
का सौदा: एक
व्यापारी ने ज़मीन
₹2 करोड़ में खरीदी
और कुछ ही मिनटों में
उसे राम मंदिर
ट्रस्ट को ₹20 करोड़
में बेच दिया।
ये आस्था नहीं,
खुला व्यापार है।
ठीक वैसे ही,
जैसे सदियों पहले
सोमनाथ को लूटा गया था
बस फर्क ये है कि
इस बार लुटेरे
बाहर से नहीं आए, ये
अंदर से हैं, और खुद
को धर्मरक्षक कहते
हैं।
₹4,300 करोड़ की
ये ‘शेल पार्टी’
स्कीम साबित करती
है कि मोदी मॉडल विकास
नहीं विनाश का
दूसरा नाम है। ये पार्टियाँ
बस पैसा घुमाने,
सिस्टम को खरीदने
और जांच से बचाने के
लिए बनाई गई हैं। और
यही वजह है कि इस
घोटाले की कोई जांच नहीं
होगी। क्योंकि जो
दोषी हैं, वही
जांच के ठेकेदार
भी हैं।
लेकिन
यही वो मौका भी है
जब विपक्ष को
सिर्फ नाराज़गी नहीं,
बल्कि नीति की ज़रूरत है।
2011 में अन्ना हज़ारे
ने जनलोकपाल की
मांग की, और कांग्रेस को झुकना
पड़ा। अब कांग्रेस
को एक नई लड़ाई शुरू
करनी होगी और ज़्यादा कठोर, ज़्यादा
पारदर्शी और ज़्यादा
निर्णायक।
हमें
एक नया Lokpal 2.0 चाहिए
जो हर राजनीतिक
चंदे का रीयल-टाइम ब्यौरा
माँगे, धार्मिक और
शैक्षणिक संस्थाओं का ऑडिट करे, और
ED-IT-CBI जैसी एजेंसियों को पूरी स्वतंत्रता दे। हमें
एक ऐसा क़ानून
चाहिए जो छद्म पार्टियों, बेनामी दान
और धार्मिक बहानेबाज़ी
को जड़ से खत्म करे।
क्योंकि
अगर पारदर्शिता नहीं
होगी, तो लोकतंत्र
सिर्फ एक स्लोगन
बनकर रह जाएगा।
अगर जवाबदेही नहीं
होगी, तो चुनाव
सिर्फ अमीरों की
नीलामी बनेंगे। और
अगर अब भी चुप्पी छाई
रही, तो फिर ये देश
उन्हीं लोगों का
हो जाएगा, जो
इसे लूट रहे हैं और
आपको भक्ति का
झुनझुना पकड़ा रहे
हैं।
अब
वक्त है आवाज़
उठाने का, सच्चाई
को उजागर करने
का, और इस लोकतांत्रिक व्यवस्था को
वापस जनता के हाथ में
सौंपने का। ₹4,300 करोड़
सिर्फ एक घोटाला
नहीं ये एक चेतावनी है।
ठगों की दास्तान
कुछ राम नाम
के ठेकेदारों ने
अंग्रेज़ों से हाथ
मिलाया था।
जो भारत को आज़ाद करवा
रहे थे,
उनको भी इन्होंने
रुलाया था।
नहीं चाहते थे
भारत एक देश बने,
चाहते थे हम ग़ुलाम रहें।
भगवान भरोसे इस
दुनिया में,
मंदिरों के घंटा बजाते रहें।
पढ़ना लिखना नहीं
है सबके लिए,
ऐसी सोच ये सब रखते
हैं।
ग़रीबों के हक़ लूट के
ये,
बस अपने घर भरते हैं।
जब भारत देश
आज़ाद हुआ,
तबसे आग लगी इनके दिल
में।
इनको ये नहीं तब लगता
था,
कुछ कर पाएंगे
हम इस दुनिया
में।
भारत को ऐसे
नेता मिले,
जो ऐसी सोच यहाँ रखते
थे।
बस देश के लिए कुछ
करना था,
वो ऐसी सोच यहाँ रखते
थे।
भारत को संविधान
दिया उन्होंने,
हर एक इंसान
यहाँ बराबर है।
चाहे छोटा हो या बड़ा
कोई भी,
हर एक का वोट बराबर
है।
राम नाम से
ऊपर उठकर,
एक ऐसी सोच यहाँ डाली
थी।
उस नींव पे देश को
खड़ा करके,
इस देश की नई पहचान
बनाई थी।
पर राम नाम
के ठेकेदार यहाँ,
ये अपनी सोच
न बदल पाए।
सालों की अपनी मेहनत से,
ये एक अनपढ़
को यहाँ ले आए।
सदियों से लूटा
जनता को,
इस राम नाम के ढोंगों
से।
फिर से ये सब शुरू
हो गया,
अब दोबारा से
ढोंग रचाते हैं
ये।
कॉलेज से ज़्यादा
मंदिर में,
विश्वास ये सब रखते हैं।
ये अनपढ़ कुछ
भी कह दे इनको,
भगवान उसी को ये समझते
हैं।
अब राज़ यहाँ
पर खुल जाएंगे,
सब जानेंगे क्या
करते हैं ये।
दौलत के लिए ये कुछ
भी करें,
भगवान को भी ठग सकते
हैं ये।
ग़रीबों का हक़
कैसे लेना हो,
इनसे अच्छा न जाने कोई।
उन्हें राम नाम का धोखा
देकर,
ये लूट ले जाते हैं
उनको यहीं।
लोगों ने इनपे
विश्वास किया,
ये अच्छे दिन
लेकर आएंगे।
अच्छे दिन तो अब तक
आए नहीं,
इनके साथ जहन्नुम
में जाएंगे।
चोरी करते हैं
वोटों की,
दौलत से खरीदा
सिस्टम को।
जनता का धन सब लूट
लिया,
और आँखें दिखाते
हैं जनता को।
कुछ पढ़े लिखे
मूर्ख हैं यहाँ,
जो ये भी समझ नहीं
पाते हैं।
कि चोर ही छुपाते हैं
राज़ अपने,
ये तो डिग्री
भी नहीं दिखाते
हैं।
ऐसे चोरों पे
कोई विश्वास करे,
मूर्ख ही वो हो सकता
है।
जो झूठ के बिना कुछ
कहता नहीं,
वो सच्चा नेता
कैसे हो सकता है।
इतिहास भरा है
इन चोरों से,
अब तक भी समझ नहीं
पाए हैं।
विश्वास कर लेते हैं ऐसे
चोरों पे,
जो दुनिया को
ठग कर आए हैं।
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