सिर कटने चाहिए: अमित शाह की सीमा सुरक्षा में नाकामी पर भड़का गुस्सा
सिर कटने चाहिए: अमित शाह की सीमा सुरक्षा में नाकामी पर भड़का गुस्सा
जब
टीएमसी सांसद महुआ
मोइत्रा ने हाल ही में
केंद्रीय गृह मंत्री
अमित शाह को भारत की
सीमाओं की सुरक्षा
में विफल रहने
के लिए जिम्मेदार
ठहराया और उनके इस्तीफे की मांग की, तो
उनके बयान ने सियासी हलकों
में हलचल मचा
दी। लेकिन यह
बयान हवा में नहीं था
इसकी ठोस
वजहें हैं। भारत
आज भी अपने कमजोर पड़ोसी
देशों, खासकर बांग्लादेश
से अवैध घुसपैठ
झेल रहा है। सिर्फ 2024 में बीएसएफ
ने 2,000 से ज्यादा
सीमा उल्लंघनों की
पुष्टि की है। बार-बार
राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत
करने का वादा करने वाले
शाह अब सवालों
के घेरे में
हैं।
मोइत्रा
का बयान कि शाह का
“सिर मेज़ पर होना चाहिए”
को भड़काऊ कहा
जा रहा है, लेकिन असल
में यह सत्ता
के शीर्ष पर
बैठे लोगों से
जवाबदेही की सीधी
मांग है। कहावत
है कि जब जहाज़ डूबता
है, तो कप्तान
उसके साथ डूबता
है। जब कोई नेता उस
ज़िम्मेदारी में फेल
हो जाए, जिसके
लिए उसे चुना
गया हो, तो जनता को
जवाब मांगने का
हक है। खुद अमित शाह
ने अपने भाषणों
में इन विफलताओं
को स्वीकार किया
है ऐसे में
मोइत्रा की टिप्पणी
एक उग्र हमला
नहीं, बल्कि एक
कठोर सच्चाई है।
और
चिंता की बात यह है
कि शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
ने इन्हीं सीमा
विवादों को हथियार
बनाकर बिहार और
अन्य राज्यों में
एनआरसी और सीएए लागू करने
की मांग को जायज़ ठहराने
की कोशिश की
है। खुद की नाकामी से
ध्यान भटकाकर, ये
नेता खुद को राष्ट्रहित के रक्षक
के तौर पर पेश कर
रहे हैं। यह राजनीति का सबसे ठंडा और
चालाक रूप है नाकामी को
चुनावी हथियार बनाओ,
और जो आवाज़
उठाए उसे चुप कराओ।
ध्यान
देने वाली बात
यह है कि अभी तक
मोइत्रा ने अपने निशाने पर
नरेंद्र मोदी को नहीं लिया
है, जबकि वे भी इस
सुरक्षा चूक के बराबर भागीदार
हैं। यह इस बात का
संकेत है कि उनका बयान
किसी व्यक्तिगत दुश्मनी
से नहीं, बल्कि
सत्ता के दुरुपयोग
और असल विफलताओं
से ध्यान भटकाने
की कोशिशों पर
रोशनी डालता है।
अगर भाजपा इस
बयान पर बौखलाहट
में प्रतिक्रिया देती
रही, और असल मुद्दों को नहीं सुलझाया, तो उसे इसका खामियाज़ा
उस बयान से कहीं ज़्यादा
भुगतना पड़ सकता
है।
यह
महज़ सियासी नाटक
नहीं है यह
सवाल है कि जब सिस्टम
फेल होता है,
तब जवाब कौन
देगा। जनता देख
रही है।
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