मोदी ने भारत को गौरव नहीं दिलाया बल्कि उसे कमज़ोर किया है

 

मोदी ने भारत को गौरव नहीं दिलाया  बल्कि उसे कमज़ोर किया है

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जब मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थन पर सवाल उठाता हूँ, तो कई लोग नाराज़ हो जाते हैं खासतौर पर तब जब मैं इसके पीछे ठोस आंकड़े पेश करता हूँ। लेकिन अंधभक्ति से सच्चाई नहीं बदलती। मोदी सिर्फ़ एक भ्रष्ट नेता नहीं हैं, बल्कि बौद्धिक और नैतिक रूप से भी कमज़ोर हैं।

उनके शासनकाल में भारत ने आर्थिक, कूटनीतिक और सामाजिक रूप से पीछे हटना शुरू किया है। वे ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्हें चीन, अमेरिका और यहाँ तक कि रूस ने भी खुलेआम दबाव में लिया है। फिर भी उनके समर्थक इन विफलताओं को अनदेखा कर देते हैं और इंदिरा गांधी के इमरजेंसी काल की पुरानी बहसों में उलझ जाते हैं। लेकिन यह बहस नहीं, भटकाव है।

हाँ, इंदिरा गांधी की इमरजेंसी (1975–77) में कई गंभीर गलतियाँ थीं। लेकिन सच्चाई यह है कि उन्होंने खुद उस आपातकाल को समाप्त किया, चुनाव कराए, और हार को स्वीकार किया। उस समय की कठोरता के बावजूद कुछ व्यवस्थाएँ बेहतर हुईं महंगाई कम हुई, जमाखोरी बंद हुई, रिश्वतखोरी घटी, और सार्वजनिक सेवाएं सुधरीं। कॉलेजों में रैगिंग बंद हो गई। डर था, लेकिन व्यवस्था भी थी। और सबसे अहम बात इंदिरा गांधी ने चुनावों में हेराफेरी नहीं की, ही लोकतंत्र को स्थायी रूप से खत्म करने की कोशिश की।

मोदी की कहानी बिल्कुल अलग है। उनकी सत्ता की भूख ने देश को भारी कीमत चुकवाई है। उनके कार्यकाल में भारत का राष्ट्रीय कर्ज चार गुना बढ़ गया है अधूरी और राजनीतिक रूप से प्रेरित परियोजनाएँ चलीं, और विकास का ज़्यादातर हिस्सा गुजरात तक सीमित रहा जहाँ से मोदी आते हैं और जहाँ उनके कारोबारी मित्रों को सीधा फायदा मिलता है। गुजरात आज केवल फार्मा और केमिकल इंडस्ट्री का हब है, बल्कि अवैध ड्रग्स के निर्माण और वितरण का भी केंद्र बन चुका है।

एक उदाहरण काफी है: पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने बताया कि झारखंड से पंजाब के लिए निकाली गई कोयले को पहले अडानी के गुजरात पोर्ट ले जाने का आदेश दिया गया, जबकि वह सीधे पंजाब भेजा जा सकता था। यह कोई कुशलता नहीं, बल्कि सत्ता और पूंजी के गठजोड़ का एक और नमूना है।

इसके अलावा मोदी सरकार ने पारदर्शिता की सभी सीमाएं तोड़ दीं। इलेक्टोरल बॉन्ड योजना ने राजनीतिक चंदों को गुप्त कर दिया, जिससे जनता को ये जानने का अधिकार ही नहीं रहा कि कौन, कितनी राशि किस पार्टी को दे रहा है। पीएम केयर्स फंड, जिसे जनता की मदद के लिए बनाया गया था, आज भी ऑडिट से बाहर है और इसमें जमा पैसों का हिसाब कोई नहीं दे रहा। इन पैसों का इस्तेमाल गरीबों की मदद के बजाय चुनाव जीतने, मीडिया खरीदने और सिस्टम को कब्ज़े में लेने के लिए हो रहा है।

मोदी के सबसे ज़ोरदार समर्थक कौन हैं? ज़्यादातर वही लोग जो ऊँची जातियों और वर्गों से आते हैं जिन्होंने हमेशा से आरक्षण और सामाजिक न्याय का विरोध किया है। उनके लिए मोदी की आलोचना का मतलब उनके विशेषाधिकारों पर हमला है।

इसीलिए मैं बार-बार कहता हूँ कि भारत में आज भी गुलामी की मानसिकता ज़िंदा है अब वो विदेशी सत्ता की नहीं, बल्कि जाति, धर्म और वर्ग आधारित नियंत्रण की गुलामी है। पीढ़ियों से यह सिखाया गया है कि अगर गरीब, दलित या पिछड़ा अपने स्तर से ऊपर उठने की कोशिश करेगा, तोईश्वरउसे दंड देगा। लेकिन सच ये है कि उन्हें कोई ईश्वर नहीं रोक रहा उन्हें एक भ्रष्ट व्यवस्था रोक रही है।

और यह मानसिकता सिर्फ़ शोषितों तक सीमित नहीं है। यह उन नेताओं को भी पकड़ लेती है जो निचली जातियों से आते हैं लेकिन सत्ता में आकर अपने समुदाय के लिए कुछ करने का हौसला नहीं जुटा पाते। नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू इसके ताज़ा उदाहरण हैं। दोनों नेताओं के पास एक मौका था मोदी और उनके कारपोरेट मित्रों के खिलाफ खड़े होने का। लेकिन वे भी उसी व्यवस्था के आगे झुक गए जो कभी उन्हें हाशिए पर रखती थी। चूंकि उन्होंने कभी वास्तविक स्वतंत्र शक्ति का अनुभव नहीं किया, उन्होंने सत्ता के पुराने आकाओं की गुलामी को ही अपना लिया और NDA का हिस्सा बनकर मोदी को फिर से सत्ता में आने दिया।

विडंबना यह है कि राहुल गांधी, जो खुद एक विशेषाधिकार प्राप्त परिवार से आते हैं, उनकी पार्टी ने अपने कार्यों से यह साबित किया है कि कैसे निचले तबकों के लोगों को ऊपर उठाया जा सकता है। यही वजह है कि बीजेपी उनके परिवार के खिलाफ लगातार झूठ फैलाती है क्योंकि वो एक अलग भारत का मॉडल पेश करते हैं।

और अब एक और ज़रूरी बात: अगर कल को सनातन धर्म से बाहर के सभी लोग दलित, बहुजन, आदिवासी खुद कोहिंदूकहलाना छोड़ दें और एक नया धर्म अपनाएं, तो तथाकथितसनातनीअचानक ही अल्पसंख्यक बन जाएंगे। यही उनकी सत्ता की सबसे बड़ी कमजोरी है। जो लोग आज अपने आप को बहुसंख्यक कहकर हक जताते हैं, वे दरअसल एक भ्रामक पहचान पर टिके हैं। हिन्दू धर्म जैसा कुछ नहीं है ये सिर्फ सनातन का एक नया लेबल है, जो हजारों साल से चले रहे भेदभाव को धर्म का नाम देकर बचा रहा है।

तो नहीं, मोदी ने भारत को गौरव नहीं दिलाया। उन्होंने भारत को एक चेतावनी में बदल दिया है एक ऐसा देश जहाँ लोकतंत्र खोखला हो रहा है, अपराधी बचाए जा रहे हैं, चुनावों में हेरफेर हो रही है, और नीतियाँ केवल कुछ अमीरों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाई जा रही हैं।

यदि आप कश्मीर और अन्य मुद्दों की असलियत जानना चाहते हैं, तो मैं आपको पत्रकार अजय प्रकाश की पॉडकास्ट देखने की सलाह देता हूँ Kasmir Issue

 

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