आतंक अब बाहर से नहीं, सत्ता के भीतर से आता है
आतंक अब बाहर से नहीं, सत्ता के भीतर से आता है
आतंकवाद
कभी भी बेवजह नहीं
होता। यह एक औजार
है। कभी कमज़ोरों द्वारा ताक़तवरों को झकझोरने के
लिए, और अक्सर, ताक़तवरों
द्वारा आम जनता को
डराकर कंट्रोल में रखने के
लिए।
दुनिया
ने इसे पहले देखा
है। अमेरिका ने अफगानिस्तान में
रूस से लड़ने के
लिए आतंकियों को हथियार दिए।
फिर जैसे ही काम
ख़त्म हुआ, उन्हें वहीं
छोड़ दिया। और उसी खालीपन
से पैदा हुआ अल-कायदा।
फिर वही खेल मिडल
ईस्ट में दोहराया गया
और
नतीजा था आईएसआईएस। जब
सत्ता आतंक को मोहरे
की तरह इस्तेमाल करती
है, तो अंत हमेशा
नरसंहार होता है।
लेकिन
भारत में आतंकवाद अब
और भी ख़तरनाक रूप
ले चुका है। यह विद्रोह
नहीं है। यह स्क्रिप्टेड
पॉलिटिकल ड्रामा है। पहले, जब भारत में
आतंकी हमले होते थे,
तो मंत्रियों की ज़िम्मेदारी तय
होती थी। इस्तीफे होते
थे। जवाबदेही तय की जाती
थी। अब? मोदी सरकार में
हर हमला “मौका” बन गया है।
जवाब
नहीं मिलते, बस नारे मिलते
हैं। जाँच नहीं होती, बस
जज़्बात भड़काए जाते हैं। दुख और
ग़ुस्से को वोट में
बदल दिया जाता है।
पुलवामा को याद कीजिए। जवान
मरे चुनाव
से ठीक पहले। कोई सुरक्षा
चूक नहीं मानी गई।
कोई इंटेलिजेंस फेल नहीं बताया
गया। बस 'सर्जिकल स्ट्राइक' का तमाशा, और
चुनावी जीत का जश्न।
अब
दिल्ली में बम धमाका,
ठीक चुनाव के दूसरे चरण
से पहले। प्रधानमंत्री विदेश दौरे पर, गृहमंत्री
बिहार में वोट कैसे
चुराना है, इसकी बैठकें
कर रहे हैं। देश कौन
चला रहा है? कोई
नहीं जानता। पर भीड़ ज़ोर से
चिल्लाएगी “मोदी,
मोदी...” जैसे स्क्रिप्ट पहले
से तय हो। यह सरकार
नहीं, यह इवेंट मैनेजमेंट
है। देश नहीं, रियलिटी शो है। और दर्शक?
सुन्न। प्रोग्राम्ड। सोशल
इंजीनियरिंग का मास्टरक्लास। हम उस
देश में जी रहे
हैं जहाँ चाय बेचने
वाला अनदेखा रहता है, लेकिन
वही आदमी अगर केसरिया
वस्त्र पहन ले, तो
भगवान बन जाता है।
जहाँ
पढ़ाई का मज़ाक उड़ता
है, और मूर्खता को
“ग्रासरूट कनेक्शन” कहा जाता है।
जहाँ तर्क करना गुनाह है,
और चुप रहना देशभक्ति।
मोदी ने ये सिस्टम नहीं
बनाया, उन्होंने इसे परफेक्ट किया
है।
नफ़रत
अब करंसी है। अराजकता अब चुनावी रणनीति
है। आतंक अब सत्ता का
सबसे बड़ा इंवेस्टमेंट है।
और सोशल मीडिया? एक समय की
आज़ादी की आवाज़, अब
ट्रोल आर्मी का अखाड़ा बन
चुकी है। जहाँ हर सच को
दबाने के लिए हज़ार
झूठ खड़े कर दिए
जाते हैं। भारत पर असली हमला
बॉर्डर से नहीं हो
रहा हमला
हो रहा है दिमाग़
पर। ध्यान भटकाओ, लोगों को बाँटो, और
वोट बटोर लो।
आप
सोचते हैं कि आतंक
पर जवाब मिलेगा? कोई
जवाब नहीं आएगा। क्योंकि ये
हमला विफलता नहीं है
ये प्लान का हिस्सा है।
और
दुखद सच्चाई? जो सबसे ज़्यादा
भुगत रहे हैं वही लोग ताली
बजा रहे हैं। भारत सोया
नहीं है। भारत को बेहोश कर
दिया गया है।
नफ़रत
का इंजेक्शन इतनी बार दिया
गया है, कि अब
लोग दर्द भी महसूस
नहीं करते। डर अब बम में
नहीं, उस चुप्पी में
है जो बम के
बाद आती है। न कोई
इस्तीफ़ा, न कोई जवाबदेही,
बस नारे। बस प्रोपेगेंडा। बस
और वोट।
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