ब्रेकिंग न्यूज़: क्या मोदी का मानसिक स्वास्थ्य जांचा जाना चाहिए?

 

ब्रेकिंग न्यूज़: क्या मोदी का मानसिक स्वास्थ्य जांचा जाना चाहिए?

अगर आप ऐसे किसी इंसान को जानते हों, जो सांस लेने जितनी आसानी से बेतुकी कहानियाँ गढ़ ले जैसे कोई सहकर्मी जो दावा करे उसने कभी हुई लड़ाई में सेनाओं का कमांड किया, या कोई चाची जो यकीन करे कि चाँद उसकी गाड़ी का हर मोड़ ट्रैक करता है तो क्या आप उसकी हकीकत पर सवाल नहीं उठाएंगे? पड़ोसी जो कहता हो उसे पानी से एलर्जी है पर रोज़ तैरते हो, या वह दोस्त जो बिना देखे ऐतिहासिक हस्तियों के साथ बातचीत सुनाता हो ये मज़ेदार आदतें नहीं, बल्कि एक ऐसे दिमाग की निशानियाँ हैं जो खुद की बनाई दुनिया में खोया हुआ हो। किसी भी दूसरे मामले में, लगातार झूठ बोलने और खुद की दंतकथाएँ गढ़ने वाली प्रवृत्ति मानसिक जांच की मांग करती है।

लेकिन भारत में हमने इसी कलाकारी इतिहास रचना, सच्चाई मिटाना औरचमत्कारदिखाना जो जांच में धुंधला हो जाए को देश की सबसे बड़ी कुर्सी तक पहुंचा दिया। ग्यारह साल बाद, नरेंद्र मोदी का कार्यकाल मानो कल्पनाओं का खजाना है: एक नेता जो अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को दिव्य मुहिम की आड़ में छिपा लेता है, लेकिन पीछे छोड़ जाता है गायब रिकॉर्ड्स और अधूरे वादों का लंबा सिलसिला। आइए एक-एकचमत्कारखोलकर देखें:

  1. चाय बेचने वाले स्टेशन की गाथा
    मोदी की शुरूआत एक रेलवे प्लेटफ़ॉर्म से चाय बेचने के किस्से से होती है। लेकिन तो कोई ऐसा स्टेशन मिलता है, कोई गवाह सिर्फ एक सुनहरा मिथक।
  2. अघोषित तलाक
    1968
    में शादी के बाद, “अपनी पत्नी को छोड़ दिया।पर सार्वजनिक रिकॉर्ड में सन्नाटा है ना कोई बयान, ना कोई स्पष्टीकरण, सिर्फ एक खाली पन्ना जहां ईमानदारी होनी चाहिए थी।
  3. चालीस साल कासंन्यासी जीवन
    वह दावा करते हैं कि उन्होंने चालीस साल साधु बनकर भिक्षाटन किया। पर उनके RSS के काम, गुजरात चुनाव प्रचार और पार्टी कार्यालयों को गिने तो ये गणित नहीं मिलती फिर भी यह कहानी बिना चुनौती के चलती रहती है।
  4. भूतपूर्व अमरीकी दौरा
    साल 2001 से पहले 29 राज्यों का दौरा किया।कोई फ्लाइट रिकॉर्ड नहीं, कोई प्रेस कवरेज नहीं सिर्फ एक रिज़्यूमे पॉइंट जो सबसे हल्की जाँच में गायब हो जाता है।
  5. अदृश्य मास्टर्स डिग्री
    सरकारी वेबसाइटों पर कभी दिखी, सवाल उठते ही जैसे-जैसे हवा में घुल गई। असली डिग्री जांच में टिकती है; नकली गायब हो जाता है।
  6. 2002 का गुजरात कत्लेआम
    उनके CM रहते गुजरात में साम्प्रदायिक हिंसा भड़की। सैकड़ों मुसलमान मारे गए, प्रबंधन ठप्प रहा। नागरिकों की सुरक्षा नेता का पहला फ़र्ज़ यहां वह बुरी तरह फेल हुए।
  7. क्रोनीवाद के लिए प्राइवेटाइजेशन
    गुजरात की संपत्ति कुछ चुनिंदा उद्योगपतियों के हाथों में चली गई। आज वही लोग मीडिया चलाते हैं जो मोदी को救世कर्ता बताते हैं सराहना और अघोषित ताकत का चक्रीय दौर।
  8. नालियों की गैस से ऊर्जा काचमत्कार
    सीवेज गैस से ईंधनका घोशित जलवा लेकिन कोई प्लांट बना, कोई इंजन चला। एक और तारीख-टिकट वाला दावे का गुब्बारा, हवा में ही फूट गया।

ये सामान्य राजनीतिक झूठ नहीं, बल्कि दस सालों से चलने वाला मिथक-महोत्सव है इतना बार-बार दोहराया गया कि केवल एक ऐसी मानसिकता ही निरर्थक आविर्भावों को शर्म-रहित दोहरा सकती है।

हर चुनाव मेंये मोदी का वादा हैको मानो कोई मंत्र की तरह दोहराया जाता है वादे मतदान होते ही धुंध में मिल जाते हैं। एक बार धोखा, शर्म तुझ पर; बार-बार धोखा, शर्म हम पर फिर भी लाखों लोग वही खोखला समझदारी से निगलते रहते हैं।

शायद इस संस्कृति में यह स्वीकार्य हो, जहाँ सदियों से सन्यासी वेशधारी ठगों ने मुट्ठी भर दान पर मसीहा बिके रहे हों जहाँ एक युवा मोदी नेसाधु जैसी भिक्षाटनसे सबक सीखा हो। पर एक आधुनिक लोकतंत्र में लगातार छल-कपट कोई राजनीतिक रणनीति नहीं, बल्कि अयोग्यता की निशानी है।

अगर कोई और नेता अपने रिकॉर्ड को भुलेख में डाल दे, विरोधाभासी समयरेखाएँ पेश करे और महीने काचमत्कारगड़बड़ करे, तो हम मानसिक जाँच की मांग करेंगे। भारत का भविष्य ऐसे कप्तान पर नहीं टिकी रह सकता जो अपनी ही कथाओं में खोया हो। क्या अब हम भी उसे हर सार्वजनिक सेवक की तरह उसी सत्य और व्यावहारिकता के कसौटी पर परखेंगे?



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