मोदी गिरफ्तार? अमित शाह जेल में? ये क्लिकबेट जंग भारत में स्वतंत्र पत्रकारिता को खत्म कर रही है
मोदी गिरफ्तार? अमित शाह जेल में? ये क्लिकबेट जंग भारत में स्वतंत्र पत्रकारिता को खत्म कर रही है
भारत
के भीड़भाड़ वाले
मीडिया परिदृश्य में,
यूट्यूब अब उन स्वतंत्र पत्रकारों के
लिए जीवनरेखा बन
चुका है जो सच्चाई को
सामने लाने का काम कर
रहे हैं। लेकिन
अब वही मंच हथियाया जा रहा है और
जनता को गुमराह
किया जा रहा है।
यूट्यूब
पर ज़रा खोजिए,
आपको ऐसे सनसनीखेज़
टाइटल्स मिलेंगे “मोदी
गिरफ्तार!”, “अमित शाह तिहाड़
में सड़ रहे हैं!”,
या “नीतीश और नायडू
ने एनडीए छोड़ा!” ये
हेडलाइंस पूरी तरह
से फर्ज़ी हैं।
मगर ये सिर्फ
ध्यान खींचने के
लिए नहीं हैं
ये एक सोची-समझी रणनीति
का हिस्सा हैं।
ये जनता की भावनाओं से खेलते
हैं, गुस्सा और
उम्मीद को भुनाते
हैं, और ट्रैफिक
खींचते हैं चाहे
पत्रकारिता की साख
को कितनी भी
चोट क्यों न पहुंचे।
ये
सिर्फ गैरज़िम्मेदार रिपोर्टिंग
नहीं है, ये एक साफ़-साफ़ हमला
है। इसका मकसद
है सच्ची और
झूठी खबरों की
रेखा को धुंधला
कर देना, ताकि
एक वक़्त बाद
सच भी झूठ जैसा लगे।
ये रणनीति अमेरिका
में सिंक्लेयर ब्रॉडकास्ट
ग्रुप ने अपनाई
थी इतनी अधिक
नकली खबरें फैला
दो कि लोगों
का भरोसा ही
उठ जाए। अब वही खेल
भारत में खेला
जा रहा है।
भारत
की मुख्यधारा मीडिया
पहले ही अपना भरोसा खो
चुकी है। अब वह सत्ता
की कठपुतली बन
चुकी है। यही वजह है
कि कई वरिष्ठ
पत्रकार इन बड़े चैनलों को
छोड़ कर यूट्यूब
जैसे मंचों पर
अपनी स्वतंत्र पत्रकारिता
शुरू कर चुके हैं जो
ज़मीन से जुड़ी
खबरें, असल मुद्दों
और सत्ता से
कठिन सवाल पूछने
पर आधारित हैं।
लेकिन
अब इन पत्रकारों
पर एक नया हमला शुरू
हो चुका है।
इनके बनाए असली
वीडियो को उठाकर,
उन्हें झूठे, भड़काऊ
टाइटल्स के साथ दोबारा अपलोड
किया जा रहा है। मंशा
साफ़ है ऐसी सुर्खियां बनाओ जिन्हें
देखकर लोग झट से क्लिक
करें, खासकर वे
लोग जो सत्ता
से नाराज़ हैं
और इन सुर्खियों
को सच मानना
चाहते हैं। “मोदी
गिरफ्तार”, “शाह जेल में”
ऐसे टाइटल्स लोगों
की उम्मीद से
खेलते हैं। जब दर्शक वीडियो
पर क्लिक करते
हैं और उन्हें
असल रिपोर्ट कुछ
और मिलती है,
तो उनका भरोसा
टूटता है और वे पत्रकार
पर ही शक करने लगते
हैं।
धीरे-धीरे यह
रणनीति लोगों का
भरोसा ही तोड़ देती है।
जब हर वीडियो
लगता है कि बस क्लिकबेट
है, तो असली पत्रकारिता भी उसी बक्से में
डाल दी जाती है। दर्शकों
को लगने लगता
है कि किसी पर भी
भरोसा नहीं किया
जा सकता। यही
तो असली चाल
है।
ये
कोई मज़ाक नहीं
है। ये एक सोची-समझी,
पूंजी और ताकत से चलने
वाली मुहिम है
ताकि स्वतंत्र पत्रकारिता
को कमजोर किया
जा सके और जनता फिर
से उन्हीं कॉर्पोरेट
मीडिया की गोद में लौट
आए जो सच्चाई
की जगह प्रचार
करता है। यह भरोसे की
हत्या है और यह कामयाबी
से की जा रही है।
कई
लोग कहेंगे कि
ये तो अभिव्यक्ति
की आज़ादी है।
लेकिन झूठ और भटकाव की
सुर्खियों को आज़ादी
का नाम देना,
असली आज़ादी का
अपमान है। अभिव्यक्ति
की आज़ादी सच्चाई
को बचाने के
लिए है, गुमराह
करने के लिए नहीं। जब
कोई जानबूझकर झूठी
खबरें फैलाकर लोकतंत्र
को नुकसान पहुंचाता
है, तो वह आज़ादी नहीं
वह तोड़फोड़ है।
इसीलिए
भारत को अब डिजिटल मीडिया
के लिए सख्त
और स्पष्ट कानूनों
की ज़रूरत है।
ऐसा कोई कानून
नहीं जो सच बोलने वालों
को दबाए, बल्कि
ऐसा जो झूठ और भ्रामक
प्रचार करने वालों
को जवाबदेह बनाए।
हमें ऐसे कानून
चाहिए जो स्वतंत्र
पत्रकारों की साख
की रक्षा करें,
झूठे क्लिकबेट को
रोकें, और जनता के साथ
सच्चाई की डोर को बनाए
रखें।
क्योंकि
यह लड़ाई सिर्फ
टाइटल्स की नहीं है। यह
लड़ाई भरोसे की
है। सच्चाई की
है। यह तय करने की
है कि भारत की जनता
सच्चाई जान पाएगी
या झूठ के शोर में
हमेशा के लिए खो जाएगी।
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