मोदी और शाह एक बार फिर चुनाव चुराने की तैयारी में हैं इस बार निशाना है बिहार

 

मोदी और शाह एक बार फिर चुनाव चुराने की तैयारी में हैं इस बार निशाना है बिहार

English Version: https://rakeshinsightfulgaze.blogspot.com/2025/10/modi-and-shah-are-once-again-trying-to.html

भारत में अब स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव नहीं हो रहे। जो हो रहा है, वो एक ऑपरेशन है। एक ऐसा ऑपरेशन जिसे दो लोग चला रहे हैं नरेंद्र मोदी और अमित शाह जिनके पीछे है बेहिसाब पैसा, ताकतवर नेटवर्क और एक पूरी तरह कब्ज़ा किया हुआ सिस्टम।

साफ़ कहें: हर पार्टी जीतना चाहती है। लेकिन सिर्फ एक पार्टी ने जीत को एक संगठित चुनावी लूट में बदल दिया है जिसमें मनी लॉन्ड्रिंग, मतदाता नियंत्रण और संस्थागत चुप्पी का इस्तेमाल होता है। ये पार्टी है बीजेपी, जिसने पिछले 10 सालों में शासन नहीं, बल्कि लोकतंत्र की लूट का मॉडल खड़ा किया है।

हर चुनाव की शुरुआत मतदाताओं से होती है। भारत में मतदाता तीन वर्गों में बंटे होते हैं:

  • हार्डकोर वोटर जो विचारधारा से पार्टी के साथ हमेशा खड़े रहते हैं।
  • न्यूट्रल वोटर जो उम्मीदवार और घोषणा-पत्र देखकर निर्णय लेते हैं।
  • निर्भर वोटर जो गरीबी, भूख, असुरक्षा और रोज़मर्रा की लड़ाई से जूझते हुए वोट देते हैं अक्सर ज़रूरतों के बदले।

यही निर्भर वोटर बीजेपी की सबसे क्रूर रणनीति का निशाना बनते हैं। बीजेपी अपने पैसों की ताकत से इन इलाकों में नक़द, उपहार, शराब, वादे और ज़रूरत की चीज़ें बाँटती है ताकि भूख को वफ़ादारी में बदला जा सके। यह दया नहीं है, ये सत्ता की खरीद है।

और ये पैसा आता कहां से है?

  • इलेक्टोरल बॉन्ड्स से जिसे सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक बताया और खत्म कर दिया।
  • PM CARES फंड से जो एक प्राइवेट ट्रस्ट है, सरकार की ब्रांडिंग में छिपा हुआ, ना कोई ऑडिट, ना कोई जवाबदेही।
  • गुजरात के अरबपतियों को सरकारी कॉन्ट्रैक्ट्स देकर जो फिर बीजेपी को फंडिंग, मीडिया कंट्रोल और चुनावी समर्थन देते हैं।

ये एक ख़तरनाक चक्र है: जनता का पैसा चुराओ, उससे वोट खरीदो, सत्ता में रहो, फिर से दोहराओ। ये राजनीति नहीं, ये संगठित चुनावी अपराध है।

और हम ये सब होते हुए देख चुके हैं:

महाराष्ट्र में, वोटर लिस्ट में अचानक 90 लाख ज़्यादा नाम जुड़ गए जो असल जनसंख्या से मेल नहीं खाते। बुज़ुर्गों की उम्र जबरदस्ती “80+” कर दी गई ताकि बीजेपी कार्यकर्ता उनका पोस्टल वोट डाल सकें चुपचाप की गई वोटिंग, बैलेट बॉक्स को बायपास करके।

हरियाणा में, हज़ारों नकली और दूसरे राज्यों के वोटरों को वोट डालने दिया गया बिना किसी ठोस जांच के। विपक्ष ने आपत्ति जताई, लेकिन चुनाव आयोग ने आंखें मूंद लीं।

दिल्ली में, जब वोट नहीं खरीदे जा सके, तो उन्हें रोका गया। वैध वोटरों के नाम लिस्ट से हटा दिए गए। चुनाव वाले दिन, सड़कों पर बैरिकेड, बूथों तक पहुंच में रुकावट खासकर उन इलाकों में जहाँ बीजेपी को वोट नहीं मिलता। बुज़ुर्ग वोटर सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए। ये कोई सुरक्षा व्यवस्था नहीं थी ये था वोटर दमन।

हर बार, बीजेपी ने सिर्फ उतनी सीटें टारगेट कीं जहाँ कम मार्जिन से जीत मुमकिन थी ताकि दिखावे में चुनावठीकलगे, लेकिन अंदर ही अंदर खेल पूरा हो जाए।

अब बारी है बिहार की और ये खेल 5 महीने पहले ही शुरू हो चुका है।

ये सब शुरू हुआ SIR (Systematic Integrated Revision) से जो वोटर लिस्ट को साफ करने के लिए होता है, लेकिन यहां ज़िंदा वोटरों को मरा हुआ या स्थानांतरित बता कर लिस्ट से हटाया जा रहा है। साथ ही, लिस्ट में नकली नाम और बाहरी राज्यों के वोटर जोड़े जा रहे हैं ठीक वही स्क्रिप्ट जो हरियाणा और महाराष्ट्र में चली थी।

अब, गुजरात कैडर के 10 IAS अधिकारियों को बिहार भेजा गया है, चुनाव से ठीक पहले। क्यों? क्योंकि ये वही अफसर हैं जो पहले चुनावों मेंपरखा हुआ हथियारबन चुके हैं। ये अफसर निष्पक्ष नहीं हैं ये उसी सिस्टम का हिस्सा हैं।

जब आप सिस्टम को कंट्रोल करते हैं, तो वो लोकतंत्र की रक्षा नहीं करता वो सिर्फ आपकी सत्ता की रखवाली करता है।

हर बार जब विपक्ष इन मुद्दों को उठाता है, तो उन्हें या तो चुप करा दिया जाता है, या धमकाया जाता है। चुनाव आयोग डेटा देने से इनकार करता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश या तो नजरअंदाज किए जाते हैं या टाल दिए जाते हैं। ईमानदार अफसरों को चुप कराया जाता है, और जो साथ दे, उन्हें इनाम दिया जाता है। मीडिया या तो ख़रीदा गया है, या डराया गया, या भटकाया गया।

ये चुनावी राजनीति नहीं है ये है चुनावी कब्ज़ा।

ये कोई साजिश नहीं है ये पैटर्न है।

और अब, बिहार अगला मैदान है। लेकिन इस बार एक फर्क है बिहार की जनता।

क्योंकि अगर बीजेपी का अपना वोट बैंक भी हिलता है, अगर थोड़े से लोग भी इस खेल को पहचान कर कोई और विकल्प चुनते हैं, तो इस बार ये चोरी नाकाम हो सकती है। निर्भर वोटर देख रहे हैं। न्यूट्रल वोटर जाग रहे हैं। हार्डकोर वोटर भी अब सवाल पूछने लगे हैं।

इसीलिए मोदी और शाह डरे हुए हैं। इसी वजह से उन्होंने 10 ‘भरोसेमंदअफसर भेजे हैं। और अब ये और भी नीचे गिरने को तैयार हैं।

लेकिन याद रखिए उनके पास सिस्टम है, लेकिन जनता के पास अब भी वोट है।

अब फैसला बिहार को करना है क्या एक और चुनाव चोरी होने देंगे? या इस बार, सत्ता को जवाब देंगे?

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