राहुल, तेजस्वी और बिहार की जनता ने पलटा खेल बीजेपी बैकफुट पर
राहुल, तेजस्वी और बिहार की जनता ने पलटा खेल बीजेपी बैकफुट पर
सत्ता
की भूखी बीजेपी
को इस वक्त कुछ ऐसा
देखना पड़ रहा है जिसकी
उसने कभी कल्पना
नहीं की थी:
राहुल गांधी को
ज़मीन पर समर्थन
मिल रहा है, और तेजस्वी
यादव बिहार में
ताकत बनकर उभर
रहे हैं वो भी
एक ऐसे गठबंधन
के साथ जो अब सिर्फ
विकल्प नहीं, एक
लहर बन चुका है: महागठबंधन।
बीजेपी
चाहती थी कि राहुल गांधी
बीते हुए कल की बात
बन जाएं। लेकिन
अब वो खुद पीछे छूटती
जा रही है।
राहुल
डरने वालों में
नहीं हैं। वो मोदी को
सीधा और तीखे शब्दों में
चुनौती दे रहे हैं, और
बीजेपी की अंदरूनी
टीम इस लहजे से बौखला
गई है। हालात
ये हैं कि बीजेपी के
करीबी लोग अब FIR
दर्ज कराने की
तैयारी कर रहे हैं, ताकि
राहुल गांधी को
बिहार चुनाव प्रचार
से दूर रखा जा सके।
लेकिन
आज बिहार की
सड़कों पर जो नज़ारा दिखा,
वो कुछ और ही कह
रहा था: राहुल
और तेजस्वी की
रैलियों में जनसैलाब
उमड़ पड़ा, और
जब महागठबंधन का
साझा घोषणापत्र पेश
किया गया तो बीजेपी
के गलियारों में
खलबली मच गई।
राहुल
ने सिर्फ हमला
नहीं किया उन्होंने नैरेटिव ही
पलट दिया।
जब
मोदी ने INDIA गठबंधन
को “मुजरा” करने
वाला कहा, तो उनका मकसद
था अपमान करना।
लेकिन राहुल ने
वही तीर उठाकर
मोदी पर ही चला दिया।
एक बड़ी रैली
में राहुल ने
कहा: “अगर जनता
कहे तो मोदी उनके वोट
के लिए नाचेंगे
भी।” सभा में ठहाके गूंज
उठे।
राहुल
ने मुजरा शब्द
को दोहराए बिना
साफ़ कर दिया असल
में जो नाच रहा है,
वो खुद सत्ता
में बैठा आदमी
है, जो हर कीमत पर
कुर्सी बचाने के
लिए प्रदर्शन कर
रहा है।
जहां
राहुल विचारधारा की
लड़ाई लड़ रहे हैं, वहीं
तेजस्वी ज़मीन पर
दम दिखा रहे
हैं। उपमुख्यमंत्री रहते
उन्होंने नौकरियां दीं और वो
काम आज बिहार
के युवाओं को
याद है। वहीं नीतीश
कुमार की उम्र और राजनीतिक
पलटीबाज़ी अब उनके
वोटरों को खटकने
लगी है कई पुराने
समर्थक अब नए विकल्प खोज
रहे हैं।
लेकिन
असली खेल परदे
के पीछे चल रहा है।
सूत्रों
की मानें तो
मोदी और शाह,
NDA से नीतीश को
बाहर करने की स्क्रिप्ट लिख चुके
हैं, ताकि उनके
सांसदों को तोड़कर
संसद में बीजेपी
की ताकत बढ़ाई
जा सके। नीतीश को
इसकी भनक लग चुकी है
और
वो जानते हैं
कि इस बार वो अकेले
नहीं खेल रहे,
उन्हें दोनों ओर
से घेर लिया
गया है।
अगर
नीतीश गुस्से में
NDA छोड़ते हैं, तो
महागठबंधन में उनकी
भूमिका तब तक सीमित रहेगी
जब तक वो तेजस्वी को मुख्यमंत्री
के रूप में स्वीकार नहीं करते। और
अगर महागठबंधन भारी
जीत दर्ज करता
है, तो नीतीश
और उनके बेटे
दोनों की राजनीतिक
ज़मीन खिसक सकती
है।
और
नीतीश ये बात बखूबी समझते
हैं।
उधर,
मोदी और शाह घबराए हुए
हैं और
बुरी तरह से।
चुनाव
से पहले सरकार
ने हर योग्य
महिला को ₹10,000 देने
का ऐलान किया,
जिसे बीजेपी मास्टरस्ट्रोक
मान रही थी। लेकिन अमित
शाह के एक बयान ने
सारा खेल बिगाड़
दिया उन्होंने
इसे “सीड मनी”
कहा, जिससे लोगों
को लगा कि शायद ये
पैसा वापस भी करना पड़ेगा।
अब
तक सिर्फ 21 लाख
महिलाओं को ये पैसा मिला
है, और सर्वे
बताते हैं कि ज़्यादातर महिलाओं को
लगता है ये उनका हक़
था ना
कि बीजेपी का
कोई एहसान। यानी वोट
खरीदने की कोशिश
बुरी तरह फ्लॉप
हो गई है।
युवाओं
और अल्पसंख्यकों में
महागठबंधन को लेकर
ज़बरदस्त उत्साह है।
क्योंकि ये गठबंधन वो
वादे कर रहा है, जिनका
इंतज़ार इन तबकों
ने सालों से
किया है।
फिर
आते हैं प्रशांत
किशोर (PK)।
पहले
उन्हें बीजेपी का
"प्लांट" माना जा
रहा था। लेकिन
PK ने बीजेपी पर
ऐसा हमला बोला
जिसकी खुद पार्टी
को उम्मीद नहीं
थी। उन्होंने लालू यादव
के अतीत पर हमला करने
से बचते हुए,
सीधा बीजेपी पर
निशाना साधा, और
जनता से संवाद
शुरू किया।
PK शायद
बहुत सीटें न जीतें लेकिन
उनका 3–5% वोट शेयर
NDA को चोट पहुँचा
सकता है, जैसा
कि गुजरात में
AAP ने कांग्रेस को
नुकसान पहुंचाकर किया
था। और इस बार पीके के
वोटों का बड़ा हिस्सा बीजेपी
से ही छिनेगा।
यही
वजह है कि बीजेपी में
घबराहट तेज़ी से
बढ़ रही है।
अब
तक गुजरात से
10 IAS अफसरों को बिहार
भेजा जा चुका है एक
इशारा कि बीजेपी
वही ‘चुनावी प्रबंधन’
दोहराना चाहती है,
जो वो पहले कर चुकी
है।
लेकिन
इस बार मामला
अलग है। दूसरी पार्टियां
अब हर बूथ, हर वोटर
लिस्ट, हर चाल पर नज़र
रख रही हैं।
क्योंकि
इस बार सिर्फ
बिहार की सत्ता
नहीं दिल्ली
की राजनीति का
संतुलन दांव पर है।
अगर
महागठबंधन जीत गया,
तो:
- मोदी–शाह की पकड़
कमजोर होगी
- नीतीश
राज में गायब ₹73,000 करोड़
की जांच होगी
- और बीजेपी के कई
गुप्त सौदे उजागर हो
सकते हैं
सिस्टम
हिल रहा है। और मोदी–शाह डरे
हुए हैं। क्योंकि ये
सिर्फ एक और विधानसभा चुनाव नहीं
है। ये वो मोड़ है, जहाँ
से भारत की राजनीति बदल सकती
है।
ध्यान
से देखिए।
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