वेशभूषा का भ्रम: कैसे भारत में वेश ही सत्ता का सबसे बड़ा हथियार बन गया

 

वेशभूषा का भ्रम: कैसे भारत में वेश ही सत्ता का सबसे बड़ा हथियार बन गया

English Version of the Article: https://rakeshinsightfulgaze.blogspot.com/2025/11/the-costume-of-control-how-india-was.html

सामाजिक इंजीनियरिंग क़ानून से नहीं, सोच से शुरू होती है। यह तब शुरू होती है जब हम कपड़ों के आधार पर व्यक्ति का मूल्यांकन करना सीख जाते हैं। धीरे-धीरे, इंसान का महत्व कम हो जाता है और उसका पहनावा ही पहचान बन जाता है। न्यायाधीश का चोगा, संन्यासी की केसरिया पोशाक, स्नातक की डिग्री गाउन ये सिर्फ कपड़े नहीं हैं, ये एक सोच बन चुके हैं। समाज ने इन्हें सत्य, ज्ञान और अधिकार का प्रतीक मान लिया है। और यही सबसे बड़ा खतरा है जब कपड़े पर विश्वास व्यक्ति से बड़ा हो जाए।

भारत में यह सोच हज़ारों सालों से गहराई से बैठाई गई है। हमने आँखें बंद कर के पहनावे को पूजना सीख लिया है। सच्चाई यह है कि हम कब के उस बिंदु को पार कर चुके हैं जहाँ कपड़े व्यक्ति के विचारों से ज़्यादा ताक़तवर हो गए हैं।

प्राचीन भारत में सत्ता हथियारों से नहीं, प्रतीकों से चलाई जाती थी। एक खास जाति, एक खास रंग, एक खास आसन यह सब प्रतीक बन गए सामाजिक नियंत्रण के। ब्राह्मण सिर्फ इसलिए पूज्य नहीं बना क्योंकि वह ज्ञानी था, बल्कि इसलिए क्योंकि उसकी वेशभूषा और स्थिति उसे पूजनीय बना दी गई। आध्यात्मिकता को रचनात्मकता और आत्मबोध से हटाकर कर्मकांड और अंधश्रद्धा में बदल दिया गया। ईश्वर को एक व्यापारिक मॉडल बना दिया गया।

आज वही मॉडल भारतीय राजनीति में दोबारा इस्तेमाल हो रहा है और इस बार, उसे चला रही है देश की सबसे बड़ी पार्टी, बीजेपी।

बीजेपी ने भारत को वैज्ञानिक सोच और तार्किक विचारों से एक बार फिर धार्मिक अंधभक्ति की ओर मोड़ दिया है। केसरिया अब केवल भक्ति का रंग नहीं, सत्ता का हथियार बन गया है। साधु और संत अब केवल आध्यात्मिक मार्गदर्शक नहीं, राजनीतिक मोहरे बन चुके हैं। और वेशभूषा अब त्याग की नहीं, प्रचार की भाषा है।

आज की सरकार विज्ञान की जगह मिथकों को, नीतियों की जगह पूजा-पाठ को, और प्रश्नों की जगह प्रवचनों को बढ़ावा दे रही है। यह भारत को आगे नहीं ले जा रही यह उसे पीछे धकेल रही है। स्कूलों में धार्मिक पाठ पढ़ाए जा रहे हैं, मंत्रियों की घोषणाएँ विज्ञान पर नहीं, धर्मग्रंथों पर आधारित हैं। यह कोई विरासत नहीं, यह चेतना का क्षय है।

इसके उलट, दुनिया के कई विकसित लोकतंत्रों में लोग सोच-समझ कर मतदान करते हैं। न्यूयॉर्क और वर्जीनिया जैसे राज्यों में लोग अपने नेताओं को धर्म या जाति से नहीं, उनके काम और सोच से चुनते हैं। वहाँ के वोटर पूछते हैं: योजना क्या है? बदलाव कैसे आएगा? वहाँ नेता चोला पहनकर आते हैं, जनता माला पहनकर वोट देती है।

जब लोग तर्क के आधार पर वोट करते हैं, तभी लोकतंत्र फलता-फूलता है। जब वे भाषणों के बजाय समाधान मांगते हैं, तभी देश बनता है। भारत में भी यही मुमकिन है लेकिन पहले हमें यह समझना होगा कि वेशभूषा के पीछे क्या है।

टीवी पर जो 'गुरु', 'धार्मिक नेता', और 'आध्यात्मिक मार्गदर्शक' दिखते हैं, वे सिर्फ चेहरा हैं। उनके पीछे हैं वे ताकतें राजनीतिक दल, उद्योगपति और प्रचारतंत्र जो इन चेहरों का इस्तेमाल कर लोगों की सोच को नियंत्रित करते हैं। आस्था को वोट में, श्रद्धा को दान में, और ध्यान को ध्यान भटकाने के ज़रिए में बदल दिया गया है।

यह धर्म विरोधी बात नहीं है। सच्ची आस्था आत्मबल देती है। लेकिन अंधश्रद्धा जो रची गई हो, बेची गई हो, और राजनैतिक हित में मोड़ी गई हो वह एक जाल है। उसमें लोग अपने शोषकों की पूजा करते हैं और सच्चाई बोलने वालों को गालियाँ देते हैं।

हम रोज़ देखते हैं एक गरीब चाय बेचने वाले को कोई नहीं पूछता, लेकिन वही आदमी अगर साधु की पोशाक पहन ले, तो उसे लोग भगवान मान लेते हैं। यही है छवि का सम्मोहन, और यही है सामाजिक इंजीनियरिंग की सफलता।

दिक्कत यह नहीं कि लोग आस्था रखते हैं। दिक्कत यह है कि वे सवाल पूछना भूल चुके हैं। सोचने की ताक़त खो चुके हैं। और इसकी कीमत है एक ऐसा भारत जो ज्ञान और विचारों के बजाय नारों, मूर्तियों और चमत्कारों के भरोसे जी रहा है।

भारत अब एक मोड़ पर खड़ा है। या तो हम फिर से सोचने लगेंगे, सवाल पूछने लगेंगे, और सच्चाई को देखने लगेंगे या फिर हम उन लोगों के गुलाम बन जाएंगे जो वेशभूषा पहनकर हमें पीछे ले जाना चाहते हैं।

क्योंकि जब वस्त्र बुद्धि से ऊपर हो जाए, जब चोला अंतरात्मा से ज़्यादा पवित्र मान लिया जाए तब गणराज्य आधा नहीं, पूरा खो जाता है।

Comments

Popular posts from this blog

In India When History Becomes a Casualty of "WhatsApp University"

Justice Weaponized: Why Injustice Wrapped in Religion Fuels the Fire in Kashmir and POK

India at the Brink: Power, Division, and the Fight for the Nation’s Soul